किसने कहा..
किसने कहा..
न जाने किसने मुझे 'अबला' का ख़िताब दे दिया। कितनी ग़लतफ़हमियां पालते हैं लोग!
मैं और अबला!
किसी युवती , किसी भी महिला को दखते ही उम्र भर जमा किए, झोले में बांधे हुए पूर्वाग्रह जैसे बाहर आने के लिए कुलबुला रहे हों! ख़ूबसूरत हो तो नज़रें उसपर से हटती ही नहीं , ख़ूबसूरत न भी हो तो उस पर फबतियां कसना, या उस की मदद करने का वादा कर उसे झांसे में डालना/ उलझाना । माना ,सभी को एक ही रंग में रंगना सही न होगा! मगर विचक्षण शक्ति को तिलांजलि देने की ज़रूरत भी तो नहीं है!
ज़िन्दगी मेरी उस वक्त बदल गई जब ज़िंदगी ने मेरे पति को छीन लिया। क्रूर मज़ाक ? ज़िंदगी सभी के साथ अच्छा बुरा करती है पर मुझे नहीं लगता कि वह किसी पर कम या ज़्यादा मेहरबान होती है! आंख मूंद कर अपना परचम दिखा जाती है! कभी हम ख़ुशी से नाच उठते हैं कभी उम्मीदों के ढलते किलों को देख आंसू बहाते हैं! कभी आसमान में उड़ने के सपने देखते हैं और कभी पंख कटते देखते हैं -
खैर ज़िंदगी अचानक बदल गई- सपने जो हमने मिल कर देखे थे मिट्टी में मिल गए - अकेलेपन की भट्टी में झुलसना होगा अब मुझे!
अकेलापन ? सच कहूं मुझे नहीं लगता कि मैं अकेली हूं! मेरे पति ने मुझे बहुत प्यार दिया, सम्मान दिया! इस अकेलेपन का अहसास तो यह दुनिया मुझे दिलाती है! लोग कहते हैं घर की वीरानी काटने को दौड़ती होगी - सदियों से लम्बा हर लम्हा ,हर गुज़रता पल लगता होगा! हर निर्णय,हर काम बेमानी , कठिन लगता होगा।
नहीं ,मुझे ऐसा नहीं लगता। घर मेरा वीरान नहीं है। जहां यादों का ख़ूबसूरत मेला लगा हो वहां वीरानी कैसी। ज़िन्दगी सभी को जीनी है और मैं नहीं मानती कि आंसू ही प्यार का मापदण्ड हैं।
अपने जीवन की बागडोर संभालना, परिवार के प्रति उदासीन न होना, समर्पण ,संकल्प और विश्वास से हर परिवर्तन का सामना करना- मेरा मानना है कि यही प्यार है। उम्र भर के साथ में भी किसी एक की अलविदा निश्चित है।हमारे समाज की विशेषता यह है कि पत्नी के निधन होने के बाद भी पति के पास विकल्प होते हैं और उसे कोई निर्बल नहीं मानता।
मगर पढ़ी लिखी हो, काबिल हो और इतनी क्षमता हो कि नौकरी कर सके, परिवार संभाल सके फिर भी स्त्री बेचारी है, अबला है!
दुनिया तो यही मानती है कि स्त्री को सहारे की ज़रूरत है-
मुझे लगता है कि उन सबको अपने पूर्वाग्रह और परिप्रेक्ष्य बदलने होंगे।
मगर बेचारे वह भी लाचार हैं ।जब तक एक स्त्री निर्बल ,ग़मगीन दिखे, उसकी आंखों में आंसू नज़र आएं अबलाओं का उद्धार करने वाले पीछे कैसे रह सकते हैं।
मगर मैं जानती हं ( और मेरी जैसी कितनी ही होंगी) किआंसू , आहें, शिकवा ,शिकायत सभी औरतों की फ़ितरत भी नहीं होती । बाहें पसार कर लेने को तैयार हूं मैं ,जो भी देगी मुझे मेरी किस्मत मगर यह निश्चित है कि कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाऊंगी! ।भाई हो या रिश्तेदार कोई, दोस्त या शुभचिंतक ही सही - मुझे अपने पैरों पर खड़े होना है,जो किरदार मुझे निभाना है इस दुनिया में, ख़ुशी ख़ुशी निभाना है।यही संकल्प है मेरा,यही श्रद्धा, यही आस्था भी!
और मेरा यही अटूट विश्वास मेरे जीवन का आधार है!यही विश्वास कि जिंदगी उसी का साथ देती है जो हार न माने, जिसके हौसले हमेशा उसके साथ तो हैं ही, बुलन्द भी हैं!
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