Meena Mallavarapu

Abstract Inspirational

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Meena Mallavarapu

Abstract Inspirational

विकल्प

विकल्प

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बेशुमार राहें, बेशुमार म॔ज़िलें

 बाहें पसार, देती तो हैं मौका,

हर रहगुज़र को, आगे बढ़ने का

मंज़िल पाने का।

लेकिन हम ख़ुद अपने ही दुश्मन बन

तंगदिलियों को देते हैं अपने ज़हन में

पनपने पलने की छूट।


हर बेबुनियाद डर को दे देते हैं क्यों

दिलो दिमाग में पनाह

 कर देते हैं सुकूने दिल को ख़ुद ही, ख़ुद से जुदा,

 कैसा है यह मज़ाक, समझ न पाऊं, ऐ ख़ुदा!

सवाल हो जहां- नामुमकिन है

 कि हो नहीं उसका जवाब

लेकिन हैं कुछ ऐसे भी सवाल जो हैं अपनी समझ से परे

क्यों हों उनके लिए हम बेहाल ?


ढूंढते ही रहे जवाब साधु, संत,

महात्मा, दार्शनिक और वैज्ञानिक

 स्त्री-पुरुष, बच्चा, बुज़ुर्ग-इन सुलगते, धधकते सवालों का-

 निराशा छोड़ लगा न कुछ भी हाथ

 सत्ता, उम्र, लिंग, बिरादरी, जाति, भाषा, प्रांत, धर्म

कोई हो देश, कोई संस्कृति न मिली छूट किसी को-


बंधी हो जैसे ज़िन्दगी कीआंखों पर पट्टी

रंग देती है सभी को एक ही रंग से।

 ज़िन्दगी ने कब किया किसी से वादा , साथ निभाने का

क्यों देते हैं सदा हम दोष उसी को?


ममता मोह नहीं उस की फ़ितरत मे न नफ़रत है न ही नाराज़गी

हम ही , सवालों के बोझ तले दबे -हो जाते हैं बेबस, बेजान।

ढूंढते ही रहे जवाब पूछते ही रहे सवाल

क्यों गिरी बिजली मुझपर , क्यों हुआ अन्याय मुझी से?

सवाल तो है यह सिर्फ सवाल मगर

 करते हैं दिन रातहम इन्सानों को बेहाल।


बच कर निकल सका जो ज़िन्दगी के शिकंजे से,

 उसकी मनमानी से, है कहां कोई?

क्या है अपने पास विकल्प?

 आजमाएं एक नया नुस्खा

कर दें ज़िंदगी को ही हैरान , हताश

 क्यों न हम ही साथ निभा दें उसका ?

 क्यों न हम ही साथ निभा कर उसका

 कर दें उसे निश्शस्त्र भी, निहाल भी ?


राहें दिखने लगेंगी ख़ुद ब ख़ुद

 मिल जाएंगी हर राही को

अपनी अपनी म॔ज़िल अपना अपना मुकाम।


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