सासू मां
सासू मां
चिन्नम्मा कमरे में बैठ कर आराम कर रही थी। काम तो वैसे सारा बहू ने निपटा ही लिया था मगर सास सारा श्रेय बहू को कैसे दे देती।
'बहू, सुबह से काम कर कर के थक गई हूं। बदन टूट रहा है।' थोड़ी देर पैर दबा देना-ज़्यादा नहीं तो भी थोड़ा-बहुत आराम आ जाएगा।तब तक चाय का वक़्त हो जाएगा। उसके बाद रात के खाने की तैयारी भी तो करनी है'।
'आई मां जी 'कह कर पार्वती चिन्नम्मा के कमरे की ओर जाने ही वाली थी कि एक भिक्षु ने आवाज़ लगाई।इस बीच सासू मां का पारा चढ़ जाने के पूरे आसार नज़र आ रहे थे।
भिक्षुक की पुकार और भूख एक ओर,दूसरी ओर सासू मां का आदेश!दोनों के बीच बहूरानी अधिक देर अपना समय गंवाने के मूड में न थी।जल्दी जल्दी दरवाज़े तक गई और भिक्षुक से बोली 'बाबा,कल आ जाना!आज तो आपके लिए कुछ भी नहीं है देने के लिए!' बाबा रुआँसा चेहरा लेकर आगे निकल गए।
'बहू,किस से बात कर रही थी?' मां जी,बाबा थे, मैंने मना कर दिया कि आज हमारे पास कुछ देने के लिए नहीं है कल आ जाएं।'
'ओहहो !बुला ज़रा उनको। ऐसे कैसे भेज दिया तूने!'
'बाबा! बाबा सुनना ज़रा!'
बाबा पीछे मुड़े आवाज़ सुनकर,उनकी आंखों में आशा की हल्की सी चमक आ गई '।
सासू मां ने बड़े ही मधुर स्वर में कहा ' बाबा,क्षमा करें,आज तो घर में कुछ भी नहीं है आपको देने के लिए! कल आ जाना।'
सासू मां के मुंह से जब तक न निकले बहू रानी के आदेश का मोल ही क्या! तीर्थ वही जो शंख से निकले !