चतुर नार
चतुर नार
लाजो बाई तंग आ चुकी थी- सुबह शाम काम , और काम, और काम! पल भर आराम नहीं ,कोई शुक्रगुज़ार भी नहीं!
'अब नहीं संभलते मुझ से इतने काम! हद है! इन्सान हूं मशीन नहीं! मालूम होता कि ऐसे फंस जाऊंगी शादी ही न करती!'
लाजो बाई आज ज़रा ज़्यादा ही थकी हुई थी! सोचा चल पांच मिनट सुस्ता लूं ! सास ससुर भी आज मंदिर गए हुए हैं पांच बजे से पहले न आएंगे! सुस्ताने क्या बैठी, आंख लग गई!
नींद में बड़बड़ाने लगी 'भगवान, क्यों मुझ पर इतना अन्याय कर रहे हो! इतना काम तो कोई गधा भी न करता जो तुम मुझसे करवा रहो! इस चक्की से छुटकारा दिलाओ भगवान!'
और लाजो की मोटी मोटी आंखों से आंसू बहने लगे!
अचानक प्रत्यक्ष हुए भगवान श्रीकृष्ण और बोले ' तुम्हारी पुकार सुनकर रहा न गया लाजो बहना! कहो क्या चाहिए?'
भगवान, इस काम से छुटकारा।पलक झपकते सारे काम हो जाएं मुझे और कुछ नहीं चाहिए! '
ठीक है! बस एक शर्त है!' लाजो घबरा गई " कैसी शर्त?'
उसके पास हमेशा काम होना चाहिए! जैसे ही हाथ खाली वह तुम्हें दबोच लेगा! ' भगवन, काम की कमी न होगी!'
'ठीक है सुबह का इंतज़ार करो!'
लाजो खुश! सुबह आई, सांझ हुई , रात भर का काम उसे बोलकर लाजो निश्चिन्त हो गई! मगर दूसरे ही दिन लाजो सोचने लगी कि अब इस को काम क्या दिया जाए! शाम के चार बजे तक तकरीबन सब कुछ निपट गया था!
' मालकिन अब क्या करना है?'
काम तो सारे हो चुके थे! लाजो की सांस ऊपर की ऊपर, नीचे की नीचे! कौन सा काम बताए!
' सुनो, वह बरगद का पेड़ है न, जब तक मैं और कोई काम न बोलूं, नीचे से ऊपर, ऊपर से नीचे तुम्हें चढ़ना उतरना है!बाजी जीत गई चतुर नार!