Meena Mallavarapu

Inspirational Others

3.0  

Meena Mallavarapu

Inspirational Others

कंगन की कहानी

कंगन की कहानी

5 mins
243


वैसे तो आज बंगलौर में, मेजेस्टिक या रेलवे स्टेशन के आस पास बच्चों के साथ सैर सपाटे, सिनेमा और पार्क घूमने जाना मुसीबतों को न्योता देना है।

बिलबिलाती भीड़, चारों तरफ़ आटो रिक्शाओं, बसों और हर तरह के छोटे बड़े वाहनों की cacaphony, ऊपर से पैर धरने की जगह नहीं! ठेले ही ठेले हैं ---हर तरह की चीज़ आप को मिलेगी यहां! 50 रुपये से लेकर 100 रुपयों में आप पैंट शर्ट का शौक पूरा कर सकते हैं! किसने यह तय कर दिया कि किसी माॅल या बड़ी बड़ी branded दुकानों पर हज़ारों रुपये खर्च करने के बाद ही आप अप टु डेट , सूटेड-बूटेड जेन्टलमैन बन सकते हैं! ऊपर से इत्र वगैरह भी तो चाहिए तस्वीर को पूरा करने के लिए! और फिर पूरे परिवार के शौक भी तो पूरे करने हैं।

झिलमिलाती, चकाचौंध करने वाली कानों की बालियां, झुमके, चूड़ियां और हार।बीवी की आंख बार बार उन दुपट्टों , लहंगो , साड़ियों और कुर्तों पर जा टिकती है!इस बीच बच्चे दूध के धुले थोड़ी न हैं---उनके काम की चीज़ों की तो गिनती ही नहीं! किताबें उन्हें चाहिए ही चाहिए , खिलौनों के बग़ैर तो दोनों बच्चे वहां से हिलने से रहे! वहां से गर जान छूटी और चार आने जेब में बच गए तो गनीमत है!

पर मेरी छोटी सी कहानी 1975 के बंगलौर की है।आज जैसा हाल न था। सिनेमा, पार्क, होटल और कम से कम

आधा घंटा सड़क के एक साइड पर सलीके से कतार में सजाई हुईं किताबों के बीच गुज़रना जैसे mandatoryथा।।

बाहर जा कर थोड़ा घूम घाम कर आते तो जी खुश हो जाता।

एक ऐसी ही शाम ----पतिदेव बाहर जाने के मूड में नहीं थे।

शायद हमें थोड़ी देर बाहर भेज कर, आराम से अख़बार पड़ कर सुस्ताना चाहते थे।

ख़ैर, मै अपने दोनों बेटों को लेकर निकल पड़ी।दोनों को उनकी मनपसंद शौपिंग करवा दी।आइस क्रीम खिलवा कर, क्रिकेट बैट दिलवाकर अब वापस जाने का सोच रहे थे परन्तु आज दोनों ने पार्क में थोड़ी देर खेलने की ज़िद की तो मैं मना न कर सकी।

मैं खड़ी खड़ी सोच रही थी कि अब देर न करें तो अच्छा रहेगा।कल की स्कूल की तैय्यारी भी करनी है।

रात होने को थी, हल्का सा अंधेरा और घर पहुंचने का वक्त।

मैं इसी सोच में थी कि अपने पास एक महिला को खड़ी पाया। जगह भी ऐसी, माहौल भी ऐसा कि अनायास ही लोग दो चार बातें कर लेते हैं , कभी-कभी दोस्त भी बन जाते हैं।

मेल मिलाप मेरी फ़ितरत समझिए, उस महिला से बातचीत का सिलसिला चल पड़ा।

बातों- बातों में उसने मेरे कंगन की ओर देखते हुए , बड़े ही सहज स्वर और सहज शब्दों में कहा

'अरे, कितना प्यारा कंगन है! यहीं बनवाया है क्या? या रेडीमेड लिया है?'

अपने कंगन की प्रशंसा यानि अपनी और अपने taste की प्रशंसा सुन कर मन लगा हवा में उड़ने! पता नहीं आज इस परिस्थिति मेरा reaction क्या होता। सिर्फ पच्चीस की मैं, बड़ी खुश कि मेरी तारीफ़ हो रही है।

'यहीं बनवाया है, राजाजी नगर में!'

'कितना प्यारा डिज़ाइन है!

बहुत ही उम्दा।मैं तो रीझ गई हूं इसपर!'

फिर थोड़ी झिझक , थोड़ा संकोच -

क्या मैं आपसे एक छोटी सी request कर सकती ह॔?'

'कहिए'  ? मैं समझ नहीं पा रही थी कि माजरा क्या हो सकता है।यह जानते हुए कि मैं कालेज में पढ़ाती हूं, शायद नौकरी की तलाश में मदद चाहती है।

'आपके कंगन के डिज़ाइन पर मेरा मन आ गया है। रीझ

गई हूं इस पर। क्या पांच मिनट के लिए इसे देंगी मुझे? डिज़ाइन की copy करवा कर आपको ला दूंगी।

अगर आपको एतराज़ न हो!'

उसके पूछने का तरीके ने मेरे मन मे अविश्वास और शक की गुंजाइश ही नहीं छोड़ी।मैंने अपना कंगन उसे पकड़ाया और कहा

'ठीक है, पांच मिनट में वापिस आ जाइएगा।देर मत करना-घर पहुंचना है-बच्चे भी अब थक गए हैं-कल स्कूल भी जाना है!'

बड़े अपनेपन से मेरे दोनों हाथों को अपमे हाथों में लेकर बोली

'कैसे धन्यवाद करूं आपका, किन शब्दों में थैंक यू कहूं, समझ नहीं आता। जल्दी वापिस आ जाऊंगी।'

पांच मिनट,  दस मिनट-----अभी मन में यह ख्याल तो नहीं आया था कि शायद, शायद वह युवती भरोसे की हक़दार नहीं थी। शायद वह वापिस न आए-शायद कुछ गड़बड़ है!

यह मानने को अभी भी मन तैय्यार ही न था कि आत्मीयता और भरोसे को कोई तोड़ सकता है।

पर इससे पहले कि शक़ मेरे मन में घर कर जाए, मैंने उसे अपनी ओर आते देखा!जान में जान आई--इसलिए नहीं कि मेरा कंगन मुझे मिल गया पर इसलिए कि मेरे भरोसे और विश्वास का कत्ल नहीं हुआ।दो चार बातें हुईं और वही हमारी पहली और आखिरी मुलाक़ात थी।

इस घटना कोई लेकर कभी कभी कितने ही विचार मन में उठते हैं

क्यों और कैसे उस महिला ने मुझसे इतना कीमती कंगन मांगने की हिम्मत की?

क्या कभी एक अजनबी को, कोई बेझिझक अपनी कोई बेशकीमती वस्तु पकड़ा देता है? न नाम ना धाम पूछने की ज़रूरत समझी।उन दिनों फ़ोन कहां थे जो झट नम्बर लेते, या iPhone से फ़ोटो खींच कर डिज़ाइन whatsapp पर भेज देते!

वह वापिस न भी आती तो उसको ढूंढ पाना नामुमकिन था, पकड़ा जाना नामुमकिन था।

क्यों उसने मेरा कंगन लौटाया?

क्या क॓गन लौटाने का सद् विचार उसके मन में पहले ही था या मेरे भरोसे का उसमें कुछ हाथ था?

हज़ारों कंगन बनते हैं, बेहतरीन डिज़ाइन में--यह मानना मेरी

बुद्धि हीनता ही होगी कि उस पर रीझ कर उसने मुझ अजनबी से मांगने की हिम्मत की।

किसी सवाल का जवाब तो नहीं मिला

पर इन्सानों की अच्छाई पर यकीन पहले से अधिक दृढ़ ज़रूर हो गया।।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational